रणनीतिकार शिवराज मम्मा ने ऐसे किया कांग्रेस के चाणक्य कमलनाथ का किला ध्यस्त


    


भोपाल 20 मार्च। काफी दिनों की उठापटक के बाद अब शायद वो पल आ गया है बीजेपी जिसका 15 महीनों से इंतजार कर रही थी। सीएम कमलनाथ के इस्तीफे के बाद बीजेपी खेमे में जश्न का माहौल है तो वहीं कांग्रेस खेमे में सत्ता से बेदखल होने का गम। इन सबके पीछे नाम आता है 'मामा' का।


*चुनाव हारे लेकिन मामा की लोकप्रियता बरकरार* :-
हिंदुस्तान की नक्शे पर मध्य प्रदेश बिल्कुल बीचों-बीच आता है। यही कारण है कि इस सूबे को हिंदुस्तान का दिल कहा जाता है। 15 महीने पहले जब विधानसभा चुनाव हुए तब 15 सालों से सत्ता पर काबिज बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन कहा जा रहा था कि शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता में बिल्कुल भी कमी नहीं आई थी। मामा का दरबार सत्ता से बेदखल होने के बाद भी सजता रहा। मामा अपने चिर परिचित अंदाज से घर से बाहर आते हैं और जनता के बीच आकर बैठ जाते हैं। फिर शुरू होता है शिकायतों का सिलसिला। मामा तुरंत मोबाइल निकालकर अधिकारियों को लाइन पर लेते हैं और लोगों के रुके हुए काम करने को बोलते हैं।


*बिना सरकार के भी लोगों की समस्याएं सुनते थे शिवराज* :-
शिवराज सिंह चौहान की यही छवि जनता के भीतर घुसी हुई है। बीजेपी आलाकमान भी शिवराज सिंह चौहान को तवज्जों देना नहीं भूलता। पिछले 15 महीनों में कई बार ऐसी नौबत आई जब लगा कि कांग्रेस के हाथ से सत्ता छिन सकती है लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसका कारण है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ भी कम बड़े राजनीतिज्ञ नहीं हैं। लेकिन इस बार उनकी एक नहीं चली। स्थानीय जानकारों के मुताबिक बीजेपी ने पूरी फील्डिंग सेट करने के लिए पांच नेताओं को कमान सौंपी थी। इन पांच नेताओं में सबसे अहम रोल था भाजपा प्रवक्ता जफर इस्लाम और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का। जफर इस्लाम को कमान सौंपी गई थी कि वो ज्योतिरादित्य सिंधिया को लाइनअप करें और नरेंद्र सिंह तोमर ने बाकी का काम साधा।


*इन नेताओं ने बनाए सभी समीकरण* :-
कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार तख्ता पलट करने में तोमर का सबसे बड़ा हाथ रहा है। इस कद्दावर नेता ने इस बार सियासत की ऐसी बिसात बिछाई कि भाजपा कांग्रेस को तोड़ने में कामयाब हो गई। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हैं। जमीन से जुड़े नेता नरेंद्र सिंह तोमर का मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चंबल संभाग में काफी प्रभाव है और कांग्रेस के ज्यादातर बागी विधायक भी इन्हीं संभाग से आते हैं, जिनके बगावत पर उतरने के कारण कमलनाथ सरकार संकट में आ गई है।


*नरोत्तम मिश्रा का भी रहा योगदान* :-
इन नेताओं के अलावा नरोत्तम मिश्रा का कम योगदान नहीं था। इस नेता को बीजेपी का मैनेजर कहा जाता है। बीजेपी का जितना भी मैनेजमेंट वाला काम होता है वो इन्ही के मत्थे होता है। कहा जाता है कि इस पूरी उठापटक में मिश्रा का भी बराबर का योगदान रहा है। बाकी शिवराज सिंह चौहान ने पहले से ही पूरी पिच तैयार कर रखी थी।


*छात्र राजनीति से उठे जेल भी गए*
शिवराज सिंह चौहान छात्र राजनीति में कदम रखने वाले नेता हैं। इन्होंने पहले राष्‍ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में अपनी सेवाएं शुरू कीं। वे 13 वर्ष की आयु में 1972 में आरएसएस में शामिल हुए और तब से लेकर आज तक वे अलग-अलग स्‍वरूपों में अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। वे मध्‍य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट से पांच बार सांसद रह चुके हैं। शिवराज इमरजेंसी में जेल भेजे गए थे। बाहर आकर एबीवीपी के संगठन मंत्री बना दिए गए।


*बुधनी से जीते चुनाव* :-
1990 में हुए विधानसभा चुनाव में शिवराज ने युवा मोर्चा वालों को 23 टिकिटें दिलाईं। यहीं से इस युवा नेता का नाम और तेजी से आगे आने लगा। शिवराज का नाम तय था कि ये बुधनी से लड़ेंगे लेकिन इसकी भूमिका बनाई 1989 में विदिशा से सांसद बने राघवजी ने। राघवजी को दिल्ली की राह पकड़नी थी। तो वो इलाके में अपने लोग बैठाना चाहते थे। शिवराज का सितारा जब लगातार मज़बूत हो रहा था, राघवजी की उनसे करीबी रही थी। तो राघवजी की सलाह रही कि शिवराज बुधनी से लड़ें। ये एक फंसी हुई सीट थी। लेकिन शिवराज लड़े और जीते।