छतरपुर। कोरोना क्या आया दिहाड़ी मजदूरों पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा । जिस रोटी की तलाश में अपने घर से पलायन करके देश के अलग अलग हिस्सों में डेरा जमाया था अब उसी रोटी की चाह में फिर अपनी जन्मभूमि याद आने लगी है । लगातार बढ़ते लॉक डाउन एवं कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते महानगरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन लगातार जारी हैं। महानगरों में कामधंधे बंद होने के बाद मजदूरों के सामने रोजीरोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया वहीं मकान मालिकों द्वारा आये दिन किराया देने के लिए दवाव बनाया गया । किराया न देने पर घर खाली कराए जाने से बेघर हुआ छतरपुर जिले के मवइया गांव का एक मजदूर परिवार पत्नी एवं तीन बच्चों के साथ 600 किलोमीटर तक जुगाड़ का साइकिल रिक्शा चलाकर 5 दिनों में हरपालपुर पहुँचा ।
छतरपुर जिले के मवइया गांव निवासी मजदूर ब्रजनंदन ,पत्नी गीता अपनी 6 साल की बेटी, 4 एवं डेढ़ साल के दो मासूम बच्चों के साथ दिल्ली में रहकर मजदूरी करता था । लॉक डाउन हुआ और मजदूरी मिलना बंद हो गई । काम नहीं मिलने के कारण मकान मालिक ने किराया न चुकाने पर घर खाली करा लिया । मरता क्या न करता ब्रजनंदन ने अपनी गृहस्थी का पूरा समान रिक्शे पर रखा परिवार को बैठाया और दिल्ली से निकल पड़ा फिर कभी दिल्ली न आने के लिए ।
5 दिनों के थकाऊ सफर में मजदूर परिवार ने बताया कि रास्ते मे कही खाने पीने की कोई मदद नहीं मिली । जो पैसा साथ लेकर चले थे रास्ते मे मासूम बच्चों की भूख मिटाने में खर्च हो गया । ब्रजनंदन देर रात जब हरपालपुर पहुचा तो उसने ने बताया कि जीवन मे सबसे बुरा और डरा देने वाला अनुभव रहा । अब कभी गांव नहीं छोडूंगा रूखी सूखी जो भी मिले मेहनत अब गांव में ही कारूंगा । दिल्ली से चल कर चार राज्यों की सीमा पार करते हुए घर पहुंचे ब्रजनंदन के परिवार को सरकारों द्वारा रास्ते में मदद न मिलने का मलाल भी है और मजदूरों के लिये कुछ नहीं करने का दिल मे दर्द भी ।