छतरपुर 18 अप्रैल। जिला अस्पताल प्रबंधन की लापरवाही के चलते शुक्रवार को एक आदिवासी युवक की जान चली गई, जिससे पूरा परिवार बेसहारा हो गया। किशनगढ़ के 25 वर्षीय युवक बसंत आदिवासी अपने पीछे विकलांग माता-पिता व 23 वर्षीय पत्नी गोरी बाई तथा 2 साल की बच्ची आशा व 4 माह के बेटे नारायण को रोता बिलखता छोड़ गए।
*सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर* ने बताया कि वर्तमान समय में कोरोना संकट के चलते मरीजों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत कम है फिर भी जिला अस्पताल में अव्यवस्थाओं व मनमानी का आलम चरम पर है, गुरूवार की मध्यरात्रि में मृतक बसंत को अचानक पेट में दर्द उठा, परिजनों ने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र किशनगढ़ में भर्ती कराया, जहां से उन्हें छतरपुर के लिए रेफर कर दिया गया। लाकडाउन होने के कारण वाहन की कोई व्यवस्था न होने पर परिजनों के द्वारा शुक्रवार की सुबह सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर को घटना की जानकारी दी गई। श्री भटनाकर ने बताया कि उन्होंने अकस्मात चिकित्सा वाहन 108 को सुबह 5:30 फोन किया तो उन्होंने सम्बंधित अस्पताल के डॉक्टर या नर्स से बात कराने को कहा, जिससे पर उन्होंने मृतक के परिजनों को 108 डायल कर नर्स से बात कराने की बात कही, मृतक के परिजनों ने जब किशनगढ़ स्वास्थ्य स्टाफ से 108 पर बात की तो उन्होंने अभी 108 डायल के व्यस्त होने की बात कह कर निजी वाहन से जाने का कह कर मामले को टाल दिया। किसी तरह परिजन मरीज को मोटरसाईकिल से सुबह 7 बजे जिला चिकित्सालय ले आए। जहां बड़ी मुश्किल से परिजनों द्वारा कई बार गुहार लगाने के बाद जिला *अस्पताल में स्टाफ नर्स द्वारा बिना जांच देखे बिना ही मरीज को इंजेक्शन व बोतल चढ़ा दी गई*। जब परिजनों द्वारा नर्स से पेट देखने की बात की गई तो नर्स द्वारा कहा गया कि डॉक्टर आकर देखेंगे तथा मामले को टाल दिया गया। बोतल खत्म होने पर परिजन द्वारा कई बार गुहार लगाने पर खून उल्टा बोतल में चढऩे लगा, तब जाकर नर्स आईं व बोलत निकली, कुछ देर बाद मरीज के मुंह से खून निकलने लगा। जिसकी जानकारी नर्स को दी गई नर्स द्वारा डॉक्टर आएंगे तब जांच होगी की बात फिर दोहरा दी गई। *अस्पताल में 12.30 बजे तक भी कोई डॉक्टर नहीं आया न ही नर्सों ने कोई सुध ली*, मरीज की तबियत लगातार बिगड़ती देख परिजन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बिजवार ले लाये। जहां से बिना जांच किये देखे छतरपुर रेफर का लिख दिया गया। परिजनों ने मरीज को किशनगढ़ ले जाकर ईलाज करने का सोचा। किशनगढ़ लाने लागे तभी दोपहर 3 बजे मरीज ने देवरा के आगे हथिनी मोड़ के पास दम तोड़ दिया। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा शुक्रवार की शाम को शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
*लाकडाउन के कारण बेटे की शवयात्रा में शामिल न हो सके माता-पिता* - मृतक युवक के माता-पिता विकलांग होने के बाबजूद तथा अति गरीबी के कारण छोटे व हल्के काम करने के लिए गुजरात गए थे, जो लाकडाउन के कारण अपने बड़े बेटे के अंतिम संस्कार में शामिल न हो सके। वहीं इस लापरवाही के कारण स्थानीय लोगों में जमकर आक्रोश है, कई लोगों ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर सोशल मीडिया पर जमकर आक्रोश व्यक्त किया है।