सुनते हो जी.... देखो रेत का खेल : सफेदपोश  + अधिकारी + रेत ठेकेदार = मालामाल ......... जनता सब जानती है पर जिम्मेदार अधिकारी खा.... मोश

       छतरपुर मप्र/धीरज चतुर्वेदी  निज़ाम बदले या कोरोना वायरस जैसे जानलेवा आपदा का कहर,  पर रेत का काला कारोबार तो निरंतर चलने वाला वो खेल है, जिसमे नेता, माफिया और अधिकारी का पूरा नेकसेस यानि रैकेट यानि भ्र्ष्ट तंत्र काला पीला करने मे पूरी ताकत झोक देता है. एक ऐसा ही मामला सुर्खियों मे है. छतरपुर जिले के महाराजपुर विधानसभा मे वर्ष 2019-20 की विधायक निधि से स्वीकृत निर्माण कार्यों को पूरा करने के लिये रेत की जरूरत के लिये नौगांव एस डी एम का विशेष रेत ठेकेदार को कोसो दूर से रेत सप्लाई का आदेश विवाद का विषय बन खुटका खुटका चिल्ला रहा है. इस आदेश के अनुसार ग्राम गरोली,  खिरवा, चुरवारी,  इमलिया और ढीगपुरा मे विधायक निधि से स्वीकृत कार्यों के लिये शिवहरे ट्रांसपोर्ट कंपनी के दीपक शिवहरे निवासी छतरपुर को 1040 घनमीटर बालू परिवहन का ठेका दिया गया है. इस मामले मे क्या पेंच है इसे लेकर मुँह वाद प्रशासन की ईमानदारी को बड़ा झोल बताता है. इन गाँवो से कोसो दूर केन नदी के रामपुर घाट से रेत का परिवहन करने का प्रशासकीय आदेश कुछ ना कुछ बड़े खेल की और इंगित करता है. सबसे पहले बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के एक खास ट्रांसपोर्ट को परिवहन का ठेका किसके इशारे पर और क्यों दिया, यही सवाल पैदा होता है. वो भी एक जिम्मेदार अधिकारी एसडीएम को क्या अधिकार है जो बिना सरकारी खानापूर्ति के किसी  विशेष को सरकारी आदेश दे देते है. दूसरा कि जब नौगांव अनुभाग मे ही कई रेत खदान है तो सेकड़ो किलोमीटर दूर से रेत परिवहन कराने कि लालसा आखिर क्यों है.  सबसे बड़ा सवाल है कि कांग्रेस कि कमलनाथ सरकार ने खनिज नीति मे परिवर्तन कर  केन सहित अन्य नदियों कि खदान पर से पंचायत का   अधिकारी विहीन करते हुए   खदानों को सामूहिक  नीलाम करने का प्रावधान किया था. जिसके तहत छतरपुर कि रेत खदानों  आंनद एग्रो फ़ूड  प्राइवेट लिमिटेड ने  100 करोड़ कि नीलामी मे ख़रीदा था. अब इस कंपनी के मालिक  सुनील गुप्ता ने चेतावनी दे दी है कि अगर बिना उनकी अनुमति के रेत का परिवहन होता है तो वो अदालत कि शरण लेंगे. जो भी अंजाम हो पर प्रशासकीय आदेश के पीछे का गुणतंगा क्या है. इसे लेकर चर्चा है जो गंभीर आरोपों से भरी है. इसके मुताबिक महाराजपुर विधायक नीरज दीक्षित कि पहल पर एसडीएम ने आदेश किया है जिसे विधायक ने स्वीकार भी किया है. चर्चाओं के अनुसार कोरोना वायरस के कारण सभी खदाने अभी बंद है. ग्रीष्मकाल मे ही नदियों से अवैध उत्खनन कर रेत को डंप कर दिया जाता है. कहते है कि प्रशासकीय अनुमति लेकर कुछ इसी डंप का खेल खेलने का मंसूबा है. क्यों कि आदेश मे बड़ा झोल ही यही है कि जब प्यासे के पास कुआ है तो सेकड़ो किलोमीटर दूर कोई भी प्यासा पानी पीने क्यों जायेगा. या तो उस पानी मे अमर होने का द्रव्य होगा या वो पानी कुछ खास होगा. इसी अमृत मे छुपा है  केन से बालू परिवहन के पीछे का रहस्य.  जब गरोली मे रेत कि लबालब खदान है तो रामपुर कि रेत खदान मे कौन से हीरे जडे है. कहाँ तक सत्य है ये उच्च स्तरीय जाँच का विषय है पर सुनने मे आ रहा है कि विशेष ट्रांसपोर्ट को परिवहन का आदेश दिलवाकर रेत का पुराना काला कारोबार करने कि नियत मे कांग्रेस और बीजेपी विधायक का गठजोड़ के साथ अधिकारी कि बदनीयती शामिल है तभी रामपुर रेत खदान के हीरे तोड़ने कि मंशा जग जाहिर हो रही है. बताते तो यह भी है कि विधायक के विशेष कृपापात्रो मे ट्रांसपोर्ट के मालिक शिवहरे  गिने जाते है. तभी उन्हें विशेष तोर पर सभी सरकारी नियम को ताक मे रख परिवहन का ठेका दिलवाया गया है. 
सनद रहे कि दो राज्यों  मप्र और उप्र को विभक्त करने वाली केन नदी कि रेत खदान हमेशा से ही रेत माफियाओ के कहर से सुर्खियों मे रही है. सत्ता के साथ या ताकत आधार पर माफियाओ के चेहरे बदलते रहे पर केन नदी के सीने को छलनी करने से कोई भी नहीं रोक सका. कारण साफ था कि विधायक, अधिकारी और माफिया का गठजोड़ था. जो रेत के अवैध उत्खनन मे हमेशा आरोपित होता रहा. जिसके सबूत भी आम जनता के सामने आते रहे और प्रशासन व सरकार कि साख पर दाग अंकित करते रहे. एक बार फिर सरकारी आदेश मे बेईमानी कि दुरगंध आने के आरोप है और जनप्रतिनिधि सहित अधिकारी कटघरे मे है.